दूर उफ़क से उठी एक हल्की सी लो,
सुरख रेत पर फिर रह-गुज़र ढूँडने निकला एक कारवाँ है!
शायद कोई निशाँ बाकी रह जाएगा इस रेत पे,
बस इसी उमीद से आज हुए हम रवाँ है!!
the pursuit of reason... the fight with self...
दूर उफ़क से उठी एक हल्की सी लो,
सुरख रेत पर फिर रह-गुज़र ढूँडने निकला एक कारवाँ है!
शायद कोई निशाँ बाकी रह जाएगा इस रेत पे,
बस इसी उमीद से आज हुए हम रवाँ है!!
Posted by Sukesh Kumar Thursday 24 February 2011 at 21:50 0 comments
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
तेरी यादों की खीज़ान आज फिर जैसे जवां हुई सी है!
दश्त में भी जैसे एक शाख-ए-गुल फिर आबाद हुई सी है!!!
तेरे होठों के तिल ने आज फिर कोई तो हरकत की सी है!
जो मेरे होठों पे फिर एक ग़ज़ल ने दस्तक दी सी है!!!
Posted by Sukesh Kumar Friday 11 February 2011 at 18:22 0 comments
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