होठों का तिल

तेरी यादों की खीज़ान आज फिर जैसे जवां हुई सी है!
दश्त में भी जैसे एक शाख-ए-गुल फिर आबाद हुई सी है!!!


तेरे होठों के तिल ने आज फिर कोई तो हरकत की सी है!
जो मेरे होठों पे फिर एक ग़ज़ल ने दस्तक दी सी है!!!

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