सैलाब के बाद

मेरी मोहब्बत का मासूम सा फ़साना है, कागज़ की कश्ती और सावन का महीना है !
हाथ में ज़हर का पैमाना है, चट्टानों के सैलाब में धड़कता एक नगीना है !!
के अब शराब तो इक बहाना है, हमें नशा उनकी आखों का छुपाना है !!!