शराब

मेरी मोहब्बत का मासूम सा फ़साना है 
कागज़ की कश्ती और सावन का महीना है !

पत्थर सा जिगरा लिए हूँ, अरमान फिर भी आईना है
चट्टानो के सैलाब में धड़कता एक नगीना है !

फूलो को कभी ना कभी तो मुरझाना है
शायद काँटे दे दे साथ मेरा, रिश्ता जो इतना पुराना है !

सांसो की कुछ किश्तें बाकी रह गई हैं
अदायगी को अभी ज़िंदगी भर निभाना है !

वहाँ उड़ा ले चलूं कच्ची  डोरी की पतंग
ऐसी जगह जहाँ से फिर और कहीं ना जाना है !

सब ठीक होने तक कहाँ रहूँगा मैं
मेरे जाते ही सब ठीक हो जाना है !

रह ना जाए तमन्ना बाकी दिल में कोई
आज फिर ढूंड रहा मुझे कोई मह-खाना है !

की बस अब !
बस अब शराब तो इक बहाना है,
हमें नशा उनकी आखों का छुपाना है!

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