ख़ामोशी

मेहरम ना रहे ज़ुबान और निगाहें अरसे से, मेरे राज़ के !
उसके नाम के अल्फ़ाज़ खामोशियौं की हदें लाँघ चुके हैं अब तो !!
और मगरूब कोई पूछता है तुम्हे मोहब्बत किससे है

0 comments: