गुल्मोहर

वही उस गुल्मोहर के पेड़ के पीछे
एक पीपल का पेड़ भी था
जहाँ मैं बैठता था
तुम्हे देखा करता था कभी हंसते, कभी रोते !
तुम्हारे आँसुओं में कभी कभी मेरे खुश्क पत्ते भी रो उठते थे !!
अब वो गुल्मोहर तो नहीं है
पर जैसे उसके फूल मेरे पीपल पर लगने लगे हैं
फूल तुम ले जाना, मैं तो आज भी सूखे पत्तों पे कविता लिखता हूँ !!!

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