शर्मिंदगी

दिलजले आज कल भी मिलते हैं
पर दिल मुर्दा हैं सब के, सिर्फ़ हवस ज़िंदा है !
ना आँसू हैं, ना स्याही, ना ही सूखे पत्ते
शायद इसी लिए आज पीपल भी शर्मिंदा है !!

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