परिंदे

परिंदो की शिकायत है के,
गीत नहीं सुनता मैं उनके आज कल !
कैसे समझाऊं के,
खामोशियाँ गैर लगती हैं मुझे अब,
और तन्हाई का सॅब्बब नहीं बनता !

खुद में ही किसी को पा गया हूँ !!

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