वो मैं, जो तेरी थी

वो मेरी निगाह की बेशर्मी, जो झुकती नहीं,
के कोई निगाह दिल्लगी अब कर पाती नहीं !
वो मेरी कमर की गरज, जो छटपटाती नहीं,
के कोई हथेलियां शरारत अब कर पाती नहीं !
वो मेरी ज़ुल्फों की ज़िद्द, जो फ़िज़ा में उड़ पाती नहीं,
के कोई उंगलियाँ झोंके सी इनमे सरसराती नहीं !
वो मेरे काँधे की रुखाई, जो चुन्नी फिस्सल पाती नहीं,
के कोई माथे से पसीने की बूँदें टपक पाती नहीं !
वो मेरी गर्दन का नखरा, जो सिरहन सी दौड़ती नहीं,
के कोई साँसों की गर्मी अब ज़बरदस्ती कर पाती नहीं
वो मेरे माथे की लकीरों की अकड़, जो सीधी होती नहीं,
के कोई होंठों की इन सिलवटों से कशमकश हो पाती नहीं !

बता ऐसा क्या राबता था तेरे साथ,
जो अब किसी की ज़रूरत होती नहीं !!

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