मुखोटा

जहाँ के सामने, अरमान कहाँ करवट ले पाते हैं
भूल चूक होने का डर ये एक दूसरे के सामने ही पाते हैं !
कैसे जाने के इन दोनो के मिज़ाज़, कुछ और हो जाते हैं,
जब एक दूसरे को सामने पाते हैं !
दुनिया का सामने तो इक मुखोटा ओढ़े रहते हैं,
एक दूसरे को गैर का चेहरा दिखाते झिझक सी दरमियाँ पाते हैं !

0 comments: