कांधा

कई किस्से होते हैं जो मौत के बाद शुरू होते हैं और जन्नत के बाद जो एक जहाँ होता है वहाँ सुनाए जाते हैं| एक किस्सा वहाँ के एक दरखत से टूट के धरती पर गिर पड़ा, मैने उठाया तो लगा के जैसे किसी की अलसाई सी नींद हो जो छूने भर से टूट जाएगी और रख दिया उपर वाली कोठड़ी में पड़े एक संदूक में| वो किस्सा अब सूख के गुलाब की पंखुड़ी बन चुका है जिसमे पायल की सी छन-छन आवाज़ आती है| और मुझे लगता है ये वही पायल है जो मैने महबूब को पहनाई थी|

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तेरा जनाज़ा निकला तो मेरे कूचे से ही था,
मगर कांधा देने आया तुझे मेरे सिवा ज़माना सारा !
मैं बस सोता रह गया !

यूँ तो कोई तगाफूल ना था,
बस मेरा जनाज़ा तेरे जनाज़े के पीछे पीछे आता रह गया !!

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