प्रेम की पहाड़ी

मैं प्रेम को पहाड़ी समझ चढ़ गया !
सोचा शिखर पर पहुँचुगा तो तेनज़िंग जैसे नाम होगा !
मगर प्रेम एक गहरी खाई है !
और इसमे उतराई नहीं होती, बस गिरना होता है,
और वापिस फिर चढ़ भी नहीं सकते !
हां नाम होता है बहुत किसी रांझे जैसा,
मगर चोट बहुत लगती है !

आज मुझे याद आया वो दिन,
जिस दिन मेरा पैर फिस्सला था इस खाई में !
तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगी थी उस दिन !!

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