सिलवटें

कुछ बच्चों सा प्यार था, जो उलझा सा रहता था अपने आप में ही - कभी नींद में डूबा डूबा सा तो कभी झाग से लड़ता हुआ| और शायद बच्चों की ही तरह उसने भूला दिया ये सोच कर के अलहड़ उम्र में रंगी जानी वाली तस्वीरें, बस ग़लतियाँ होती हैं, जिन्हें वक़्त रहते ठीक कर देना चाहिए|

और मैं भी ये सोच चुप हो गया के इस ख्वाब का भला कौन साक्षी रहा है, जिसे सिर्फ़ हम दोनों ने देखा था| तन्हा रातों और ख्वाबों से किसी ओर को हमदर्दी नहीं हो सकती| समय एक मिथ्या है, ये घड़ी की सुईयां बेशक कबूल कर लें पर वो बादल नहीं करते जो मेरी पलकों पे सज़ा गये थे तुम| मगर समय सच में एक मिथ्या है जिसे असल में कोई देख नहीं पाता बस हम मान लेते हैं| मेरी रातें अपंग हो कर ठहर गयी हैं किसी सुंदर मुकाम पर - किसी हसीं परी से जैसे उसकी खूबसूरती चुरा कर बना हो वो मुकाम| बरसों किसी ने मेहनत की हो जैसे खुद को खुद में छुपा देने की - तुम यूँ रूई की तरह सिकुड जाती थी और मैं किसी सॉफ्ट-टॉय जैसे तुम्हे सहलाता रहता| मैं आज भी बिस्तर की बाईं ओर खाली छोड़ कर सोता हूँ, पर बाईं ओर अब सिलवटें नहीं पड़ती|

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