लम्हे

कोशिशें नाकाम हों या लम्हे खाक हों, फरक नहीं,
लड़ते रहे हैं दोनो वक़्त से अब भी !
उसे याद है पहला दिन मुलाकात का,
और मुझे आख़िरी दिन तालुकात का !

हैपी वीकेंड

आज के दिन ऑफीस में "हैपी वीकेंड" कहने का एक क़ायदा सा है !
मैं प्रेशान हो जाता हूं,
एक यह सोच के लोगों के "वीक्डेज़" क्यों "हैपी" नहीं होते,
दूसरा यह सोच के मुझे कोई "गुड नाइट" नहीं कहता !
मुझे ज़रूरत है ऐसी शुभ कामनाओं की,
के तुम्हारे बिन दिन तो कट जाते हैं मगर रातें नहीं !!

यूं ऑफीस का एक "गार्ड" बोलता है "गुड नाइट",
पर उसका कहना मिथ्या सा है ,
मुझे लगता है जैसे मैने उससे कुछ छीन लिया हो !
वह शुभ-कामना नहीं अपितु कामना होती है,
वो रात भर तन्हा जागता है "गुड नाइट" की उमीद में !!

'तुम'

रेडियो पे एक गीत चल रहा था - 'ज़िंदगी धूप तुम घना साया' !
मैं अभी तलक उस 'तुम' को ढून्ढ रहा हूँ !
ना जाने मेरे कितने 'तुम' गुम हो गए हैं,
'तुम' को ढूँढते हुए !
और कितना आसान था तुम्हारा 'तुम' ना रहना,
'तुम' आख़िर 'तुम' ही रहे !!

निशान

यूँ तो अब सिर्फ़ निशान बचे हैं दीवारों पे,
तस्वीरें को उनके रंगों के साथ उपर वाली कोठरी में रख आया था !
मेरे उजड़े हुए घर की कहानियाँ,
अब मकड़ी के बसाए हुए घर के साथ रहती हैं !
एक आईना बचा है पीछे की दीवार पे जिसमे से,
रोज़ सुबह चोरी से तुमको निहारा करता था !
अब मैं अक्सर पूछता हूँ खुद से के सामने
आईना है या तस्वीर टॅंगी है फूलों के हार वाली !
यूँ तो अब सिर्फ़ निशान बचे हैं !!

बदगुमानी

तुम जो आ जाते हो ख्यालों में
बिन बुलाए मेहमान की तरह !
खुद को बचाए रखने की कोशिशें
दगा दे जाती हैं बेईमान की तरह !
बंद कर लेती हूँ किवाड़ और छुपा लेती हूँ खुद को
यकीन है आओगे तुम पर रहती हूँ बदगुमान की तरह !!

'शिव' का जीना

मैने रंज गोद ले लिया है,
और पालता हूँ अपनी ही ख़ुदकुशी को !
देख के गम वालिद का,
मौत खुद कहती है के
'शिव' का जीना यूँ ही ज़ाया ना था !!

सीने में तमाशा

एक तो याद है तुम्हारी हर ज़र्रे पर टॅंगी हुई,
और एक सीने में तमाशा, वो अलग !

एक पत्ता गिर पड़ा पेड़ से,
जिसके नीचे मैं खड़ा हूं,
बारिश से बचने के लिए !

सोचने वाली बात है के यूँ ही,
नयी कोपलों वाले छोटे मासूम से पत्ते ही,
शहीद होते हैं तूफान में !

उस असमयक समय तुम याद आ जाती हो मुझे.
के तुम्हारी आँखें भी कितनी मासूम थीं !
झपक जाती थीं, जैसे शाख लचकी हो,
किसी परिंदे के उड़ने पे !

आज कल पता नहीं क्यों,
छतरी के नीचे भी भीग सा जाता हूं !
उस दिन तो तुम्हारे साथ,
बारिश में भी सूखा रह गया था !!

तुम आ जाओ जहां कहीं भी हो,
के तुम दूर हो मगर गैर नहीं !!

कोने में

उसे आ जाता है फोन उसके मंगेतर का,
मेरे फोन पर भी बज उठती है धुन "ये दूरियां" गीत की !
हम दोनो बातें करते हैं दो अजनबिओं से,
खुद को एक दूसरे से अजनबी बना !
और मैं मसोस के रख लेता हूं मन को,
एक कोने में जहां कोई आता जाता नहीं !!

इक गिला है

इक गिला है गुज़ारिश के दरीचे में !
जब ख्वाहिश की हवा याद के चिल्मनो को उड़ाती है,
तो गिला नासूर बन के पुकारता है के,
मुझे अफ़सोस है जो मैने तुमसे मोहब्बत की !
ये शब्द दर्ज़ हैं मेरी हर उस कविता में
जिसमे मैने तुम्हारा अक्स ढूँढने की कोशिश की है !

मायूसी

पता नहीं यह मेरी मायूसी है मोहब्बत से
या मोहब्बत मायूस है मुझसे !
हाँ मगर, मायूसी है और कुछ शब्द हैं बयाँ करने को !!