कोरा मील पत्थर

सभी बच्चे मासूम हुआ करते हैं, पर वो कुछ स्यानी सी थी|
वो कटी पतंग की तरह हिलोरे खाती आ धमकी फिर से| आज मैडम जी ने ज़िद्द पकड़ ली के बुधिया के गांव के पार जाना है| रोज़ शाम को शहर के बाहर फेरी दिलाने ले जाता था उसे, आज कल काम का बोझ ज़्यादा था तो कुछ दिन फेरी नहीं हो पाई| फिर से आनाकानी की, तो चैलेंज दे दिया के मैं इतना दूर जाने से डरता हूं| काम निकलवाना कोई बच्चों से जाने!
उसकी फ्रॉक की जेब में एक कैमलिन के कलर्स की डिब्बी हमेशा रहती| वो जहां भी मील पत्थर देखती तो सफेद कलर से पुताई को ढान्क देती और काले से, मील कम कर के दोबारा लिख देती| उसे लगता था के ऐसा करने से मुसाफिर का रास्ता कम हो जाएगा क्योंकि मील पत्थर तो हमेशा सच बोला करते हैं|
इस उमर में दूसरे कहानियां सुनते हैं पर मैडम जी की दिलचस्पी जवाब सुनने में थी| मेरे जवाब कनखिओ से भांपते रहते के शायद सवालों को उनकी मंज़िल मिल गई हो और पीछा छोड़ दिया हो, पर हर बार वो जादूगर की तरह अपनी चोटी के नीचे रखे नन्हें से पिटारे में से नये नये कबूतर उड़ाती रहती| आज उसके कबूतरों की उड़ान कुछ ज़्यादा ही थी| बुधिया का गांव कब का पीछे छूट गया, संध्या का वक़्त, मैं रास्ता भूल गया और गांव की पगडंडीओं पर वैसे भी दिशा निर्देश नहीं रहते| तैअ हुआ के पहेले पक्की सड़क ढूंढी जाए| घुस्मुस्से में कुछ यतन के बाद पक्की सड़क मिली, पर फिर भी रास्ते की कुछ समझ ना आई और आस पास खेतों में आँधियारे के समय कोई था भी नहीं| तो सोचा किसी भी ओर चल के कहीं दिशा निर्देश मिल जाएगा| एक ओर कुछ दूर चल के मील पत्थर दिखा|
वो देखते ही साइकल से उतर कर भाग के पहुँची और अपनी कलर्स वाली डिब्बी निकाली और पीछे पीछे मैं| नज़दीक पहुँच वो देख के किल्कारी मार हंस पड़ी| उस मील पत्थर पे कुछ ना था, ना मंज़िल लिखी थी ना दूरी, सफ़ा-चट कोरा !! उसे उसने वैसा का वैसा ही छोड़ दिया, बोली, के ये भी हमारी ही तरह भटक गया है|

0 comments: