प्रेम की परख

कुछ लोग दूर होते हैं तो लगता है के ज़्यादा पास हैं, आमने सामने चुप्पी की एक दीवार बन जाती है | कुछ दार्शनिक लोग और प्रेम के माहीरों का कहना है के जब दिलों में नज़दीकियां हों तो शब्दों की ज़रूरत नहीं रहती | मेरा मानना अलग है - कहने की ज़रूरत होती है, कहने को बहुत कुछ होता है, बहुत सी बातें होतीं हैं पर हम कह नहीं पाते | शायद इसी लिए इंसान ने संगीत और कविता को जन्म दिया, एक ज़रिए की तलाश में | मैं भी नाप तोल के भोली सी प्यार की रीझ को रिसने देता हूँ शब्दों के ज़रिए मगर कुछ शब्द बनावटीपन का शिकार हो ढेर हो जाते हैं तो कुछ अपनी ही करतूतों पे लज़्ज़ा जाते हैं |
मैने जीवन में विदायगी बहुत देखी है, ना हिज़र ना वस्सल, बस विदायगी ! लोग आते हैं और चले जाते हैं, कभी कोई रुका नहीं | मैने बहुत कोशिश की जाते हुए लोगों को रोकने की, मगर कोई रुका ही नहीं | इस मुआमले में जीवन ने मेरे साथ कभी निरपक्षता नहीं दिखाई और शब्दों ने कभी साथ नहीं दिया| एक बात यह भी है के मैं भी कभी रुका नहीं और कभी किसी को सुना नहीं |
जाते हुए लोगों की पीठ, जाती हुई ट्रेन या बस और खिड़की में से एक उदास मुस्कान, ऐयरपोर्ट के दरवाज़े में ओझल होते हुए लोग, कैब में से बाइ-बाइ करती हथेलियाँ... मुझे वो सब लम्हे याद हैं | विंडबना ये है के मुझे मेरा किसी को पीछे छोड़ना याद नहीं आता | बहरहाल, कुछ याद रखना या किसी के लिए रुकना वैसे भी प्रेम की परख नहीं है |

सही बात यह है के प्रेम की परख ही नहीं हो सकती !

मैट्रिमोनिअल साइट्स

प्यार में सभी बच्चे हो जाते हैं । सही बात यह है के हम हो जाना चाहते हैं क्यों के सिर्फ बच्चे ही हैं जो सच्चा प्यार कर सकते हैं । इसी लिए हम बच्चे बन के कोशिश करते हैं के हमारा गर्लफ्रेंड/बॉयफ्रेंड वाला बनावटी प्यार बच्चों की ही तरह सच्चा हो जाए । काश ! भले ही बच्चों वाला प्यार पाया न हो, कभी उसने भी बच्चों वाला प्यार किया ज़रूर था । वो कुछ खास ख़ूबसूरत नहीं थी, शायद औसत से भी कम थी । चेहरा-वेहरा नहीं देखा था उसने, बस महसूस किया था उसकी हथेलिओं का होना अपने रुखसारों पे बिना वजह, महसूस किया था एक पगली लड़की का असमय किसी बात पे पगला जाना, महसूस किया था हवा का वो झोंका जो बार बार उसकी ज़ूलफें चेहरे पे उड़ा के परेशान करता था, महसूस किया था के जो झर झर बहे वो आंसू किसी ओर के लिए थे...
बस महसूस किया था ! जिसके लिए सज़ा मिल गयी उम्र क़ैद की उसके सपनों को !!

जो चेहरा कभी ठीक से देखा नहीं आज वो मैट्रिमोनिअल साइट्स के चेहरों में वही चेहरा तलाशता रहता है के शायद बच्चों वाले सच्चे प्यार का सौदा कहीं तए हो जाए !

मुफ़लिसी

तुम्हे फुरस्सत नहीं है नये गुलों से गुलज़ारों में
या अब वो शिद्दत नहीं बची मेरे इंतज़ारों में !
कटोरा मेरे सामने रखा, आज भी खाली है
दौलत है, पर जेबें खाली हैं मोहब्बत से सबकी बाज़ारों में !!

चिंगारी

यूँ दिन भर निकल जाता है कोई ना कोई कशमकश में
पर रात को जल उठता है इश्क़, आले में दिए की तरह !
कब की बुझ गयी होती, नशे में लौ लड़खड़ाती रहती है,
बस यादें हैं जो चिंगारी भड़काती रहती हैं फ़िज़ाओं की तरह !!

गुफतगूं

हिज़र में, बदनसीब की कैफियत क्या है, सुनो
दुआ भी कबूल नहीं होती मज़ारों में !
तालुकात तूने मुझसे तोड़ा, ज़माने से नहीं
क्यों अब तेरी आमद की गुफतगूं भी, नहीं मिलती बाज़ारों में !!

घर घर

भर लेते हैं गैरत मुठ्ठी में
और इकठी कर लेते हैं मुफ़लिसी कुछ जेब में !
के शायद कोई ओर दौलत मिले ना मिले
हम घर घर खेल लेते हैं इसी से !!

कनीज़

ये मोहब्बत ज़िंदगी की वाली नहीं, शहादत की कनीज़ है !
और भी आएंगे मेरे बाद, पहेले भी आए थे कई,
के ये इश्क़ निभाने की नहीं, कर गुज़रने की चीज़ है !!