चिंगारी

यूँ दिन भर निकल जाता है कोई ना कोई कशमकश में
पर रात को जल उठता है इश्क़, आले में दिए की तरह !
कब की बुझ गयी होती, नशे में लौ लड़खड़ाती रहती है,
बस यादें हैं जो चिंगारी भड़काती रहती हैं फ़िज़ाओं की तरह !!

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