इंतज़ार

कुछ ले लिए थे जो उधार
किशतों में चुकाता रहता हूं वो लम्हे !
सूद तो निभ जाता है,
असल में बाकी हैं सब लम्हे !

जिए हैं बार बार मैने तन्हाई में
वस्सल की रात के वो कुछ लम्हे !
और ये भी सोचा है के शायद
वो रात ही थी कुछ लम्हे !

कसम से, मैने गिने हैं सितारे सभी कहकशां के,
कहीं ज़्यादा हैं उनसे भी
मेरे इंतज़ारों के लम्हे !

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