एकांगी

तुम मुझे ले चलो
जहां लम्हों की परिभाषा ना हो !
जहां 'हम क्यों हैं'
इस सवाल के जवाब की जिज्ञासा ना हो !
हो तो बस तुम्हारा ये सोचना
के मैं अब पूरा हूं और मुझमे
खुद ही की ना रहने की निराशा ना हो !!

जहां हम दोनो एक चट्टान से हों
जिसे अभी तराशा ना हो !!

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