हत्या

चुप्पी की धार से तीखा उपेक्षा का खंजर,
भोंक दिया था मासूम सी ज़िद्द के सीने में !
और निकल गयी थी सारी नफ़रत छींटों में
मोहब्बत के लाल रंगों में रंगी !
उसी नफ़रत सने खंजर से आए दिन मैं करता रहता हूं,
मोहब्बत का खून जन्म लेने से पहेले ही !!

इक कुड़ी जिसदा नाम मोहब्बत है गुम है...
शिव को तो मिली नहीं और मैं जन्म लेने नहीं देता...

"सीरियल किल्लर" होना भी शायद ज़रूरी था...

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