प्रेम पत्र

दिल प्रेम-पत्र को किराए का मकान बना रहता है,
उसी पुरानी संदूकची में, जिसका ताला गुम हो गया था !
हर शाम यादें मकान-मालिक की हक़ारत नाक पे ले,
मेरा दरवाज़ा खटखटाती हैं !
मैं रोज़ पायल की एक कढ़ी बतौर किराया गिरवी रख देती हूँ !
रोज़ दो आहें बतौर सूद भी ले जाती हैं, यादें ! ज़बरदस्ती !

काश! के उस संदूकची का ताला नहीं बलकि चाबी गुम हो जाती,
या वो आख़िरी नहीं पहला प्रेम-पत्र होता !!

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