पर्दे

पर्दों के पीछे अतीत के दरीचों में,
एक गुल्दान रख के गयी थी तुम !
उसके फूल सब मुरझा गये हैं,
पर अब भी बाकी हैं कुछ कांटें !!
 

फूल अब डायरी में सियाहीओं से लड़ते हैं,
और कांटे बेताब रहते हैं ख़रोंचने को !
वक़्त ने मरहम लगा के छुपा दिया उपर से,
पर नीचे बाकी हैं सब झरीटें !!


पर्दों को अपनी जगह रहने दो,
यारा, बाहर यादों का घना अंधेरा है, अंदर आ जाएगा !!

0 comments: