मैं चला

कहानी लिखने को चला था,
मैं इक दास्तान बना गया !
इक किरदार नक्काश रहा था,
मैं इक ज़िंदगी निभा गया !

कुद्रतन उठा नींद से तो,
मैं इक ख्वाब जगा गया !
खुली आँखों से ख्वाब देखा तो,
मैं सबको आईना दिखा गया !

मंज़िल ढ़ूंढने निकला था,
मैं सब रास्ते भुला गया !
मैं चला था अकेले,
पीछे इक कारवां चला गया !

मैं तन्हाई में रोया,
गम की महफिलें सज़ा गया !
अपने काँधे से बोझ उतारा तो,
चार का बोझ बढ़ा गया !


मुझे छू के गया था बस,
वो मुझे मोहब्बत सीखा गया !!

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