जन्म

इन आँसुओं का क्या करूँ !

अंजुलि में भर लूं,
और पी जाऊं एक ज़हर का प्याला समझ के !
या मोती बना पिरो लूं धागे में,
और चढ़ जाऊं फाँसी उसपे एक नयाब तोहफा समझ के !
 

बता, इन आँसुओं का क्या करूँ !


यारा, मरना पड़ता है पहेले, नया जन्म लेने के लिए,
के बेचारगी एक बद्दुआ है, किसी अपने की !!

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