शनाखत

मैने बन्टोरी थी स्याही खैरात में,
वो लफ्ज़ संजोता रहा, लुटाता रहा !
मेरे पास थे रंग सारे,
वो ज़िंदगी की तस्वीर बनाता रहा, मिटाता रहा !

मेरी निगाहें आईना थीं,
वो खुद को संवारता रहा, निखारता रहा !
मैं प्रस्तिश में सर झुकाए बैठा रह गया,
वो सजदे सजाता रहा, उठाता रहा !

वफ़ा की शनाखत मुझसे है,
वो बेवफाओं को अपनाता रहा, आज़माता रहा !!

0 comments: