अभिमान

एक लकड़हारा था, बहुत ग़रीब, बेहद बदसूरत और बेहिसाब खुशहाल !

पेट भरने के लिए रोज़ जॅंगल में लकड़ियाँ काटता था, आत्मा की प्यास बुझाने के लिए बंसी बजाता था और पंछीओं के साथ गीत गाता था | धन के नाम पे एक कुल्हाड़ी और एक बंसी के सिवा कुछ ना था, पर दौलत के नाम पे दुनिया भर का संतोष था |

एक दिन लकड़हारा जॅंगल में एक परी को देखता है| उसका मन किया के इतनी खूबसूरत परी को बाहों में भर ले या कहीं भगा के ले जाए इस जॅंगल से भी कहीं दूर | वो कदम बढ़ाता है, पर ठिठक जाता है | वो परी एक पिंजरे में क़ैद होती है, एक बेहद सुंदर मोर के पिंजरे में |

लकड़हारा परी से जा के पूछता है के वो पिंजरे में क्यों बंद है | परी बताती है, “मोर ने मुझे एक दानव से खरीदा था और अब मैं उसकी जागीर हूँ | मोर मुझे आज़ाद तो कर देगा पर तुम्हे उसे मेरे बदले कुछ बेशक़ीमती देना होगा |” लकड़हारा बोलता है, “मेरे पास तो ऐसा कुछ नहीं है, पर ये कुल्हाड़ी और ये बंसी है, मेरी सारी धन-दौलत यही है |” मोर बोलता है किसी की पूरी की पूरी धन-दौलत से बेशक़ीमती और क्या हो सकता है, मैं तुम्हारी दौलत ले लूँगा परी के बदले |

परी पिंजरे से बाहर आती है तो लकड़हारा अपने मन की बात परी को बोलता है तो परी हंस देती है | बोलती है, "मैं परी हूँ और तुम लकड़हारे !!" खुद की पहचान तो बता ही देती है परी, साथ साथ उसकी भी पहचान बता देती है | और ये बोल के वो उड़ जाती है | अकेली !

उस दिन के बाद फिर कभी जॅंगल में बंसी नहीं बजी |
बस, कहानी ख़तम!

परी और लकड़हरे का आगे कुछ नहीं होता |
पर मेरा अनुमान है के ना वो लकड़हारा था ना वो परी थी, ना वो ग़रीब था ना वो किसी दूसरी दुनिया की, ना वो बदसूरत था ना वो खूबसूरत |

वो दोनो अभिमान थे अपने अपने होने के !!

0 comments: