कमी


एयरपोर्ट पे मेरे साथ खड़ी लड़की उसी जोड़े को देख रही थी जिसे मैं भी काफ़ी देर से ताक रही थी| हम दोनो ही जा रहे थे और सोच रहे थे के कोई नहीं जो विदाई देने आया हो| लगा के वो बोल रही हो अपने गुम हुए प्रिय को के तुम भी आओ और चूम लो माथे पे सामने वाले लड़के की तरह; और मैं बस रुक जाऊंगी ज़िंदगी भर तुम्हारे पास| ये सोच वो कितना टूटी होगी अंदर से और शायद ज़िंदगी भर टूटती रहेगी थोड़ा थोड़ा ऐसे ही मौकों पे|

असमंजस उसे बस इस बात का था के क्या उसके प्यार में कुछ कमी थी जो वो नहीं मिला उसे या उसका प्यार इतना गहरा था के तड़प ज़िंदगी भर रही| गुलदस्ता बनाने के लिए दूसरे फूल भी तो तोड़े जा सकते हैं, एक काँटों वाले गुलाब ही तो नहीं होते गुलदस्ते के फूल!

मैं अभागी इस बात से गमगीन के मेरे पास अपनी कोई कहानी नहीं| मगर, किसी के ना होने से या कुछ ना होने से भी ज़िंदगी कहाँ रुकती है! फिलहाल, ज़िंदगी हलक के नीचे उतरी बैठी है किसी कोने में ज़हन के! जी लो!!

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