एकांगी

तुम मुझे ले चलो
जहां लम्हों की परिभाषा ना हो !
जहां 'हम क्यों हैं'
इस सवाल के जवाब की जिज्ञासा ना हो !
हो तो बस तुम्हारा ये सोचना
के मैं अब पूरा हूं और मुझमे
खुद ही की ना रहने की निराशा ना हो !!

जहां हम दोनो एक चट्टान से हों
जिसे अभी तराशा ना हो !!

झलक

बस इक झलक ही मिल पाती है,
यूं कसक सी रहती है जी भर देख लेने की हर बार!
चल ऐसा करते हैं,
तू पलकें ना झुकाना और मैं ना चुराऊंगा निगाहें अब की बार!!

बदलाव

प्रेम कब बदलता है,
बस गुम हो जाता है, गर चाहिए तो बस ढूंढना भर है !!
प्रेम स्थिर, अटल, अचल, रहता है,
और वो ताना कसती है के तुम आज भी वैसे के वैसे ही हो !!

बहाना

तुम आओ तो गिला दूर कर देंगे !
तुम ना आओ तो गिला तुम्हारे आने तक बचा कर रख लेंगे !

सच्च कहती है दीवानी के
मोहब्बत में कोई शिकवा नहीं होता !
बस बहाना भर होता है !!

आख़िरी मुलाकात

तुमने आँखों ही में कह दिया था,
यूँ एक टक मत देखा करो अच्छा नहीं लगता !
जो छाप पड़ी थी उसे मिटाने की कोशिश भर तो थी,
पर जो भी मिटाया वो ओर गहरा होता गया !!
निगाहों की पहली मुलाकात थी, वास्ता खुद-ब-खुद होता गया !!

आज तुमने भी निगाहें नहीं चुराईं,
के कोई तस्सवुर हमारे बीच हो जैसे !
चलो, अब की कुछ यूं करते हैं,
इक धागे में दो मोती बन के बँध जाते हैं !
कही दूर जाएंगे भी तो घूम के फिर मिल जाएंगे !!

या फिर सजा लेते हैं मोती पलकों तले,
तस्सवुर तो भीग जाएगा पर शायद घाव सिल जाएंगे !!

बंद कमरे

पता नहीं हंसना क्यों इतना आसान होता है दुनिया के सामने, मगर रोने के लिए बंद कमरे ढूँढने पड़ते हैं !
और पता नहीं नफ़रतों के सिलसिले खुले आसमान तले दम भरते हैं, मगर प्रेम बंद कमरों में जताया जाता है !!
शायद बंद कमरों में आँसुओं और प्रेम में भी अंतर नहीं रहता...

दोष

मानता हूं तेरा प्यार भी अपनी जगह सही था
पर बता! उस पायल का क्या दोष था?