सवेरा

कुछ दिए सिसकियां भरते हैं
और मान लेते हैं तकदीर अपनी,
बुझी बाती के धुएं को !
कुछ दिए रोते रह जाते हैं
और जलते हैं पूरी रात,
इंतज़ार में रोशनी के !!

सवेरा हो भी तो भला सूरज निकलेगा या नहीं, क्या पता !!

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