मुखौटा

मैं ढूंडता हूं हंसी अपनी,
दूसरों के चेहरे में !
और बन जाता हूं वैसा ही,
जैसे के सामने वाले की निगाहें देखती हैं !

सच ये है के,
हंसी एक 'extinct species' हो गयी है !

और मैं रह गया हूँ बन के इक मुखौटा !!

0 comments: