पहचान

पता है घर के असली मायने एक बंजारा ही समझ सकता है,
जैसे मोहब्बत की परिभाषाएं रटी रहती हैं तन्हा शायरों को !
कल रात मुझे इक शायर बंजारा मिला, वो ज़िंदगी से निभा रहा था कोई रंजिश,
और पहचानता था उसे दूर से ही !

मालूम पड़ा, ज़िंदगी, घर और मोहब्बत, बस दो चीज़ों का योग भर है !!

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