चिठ्ठीओं से नाता

वो अक्सर आ के पूछती है सुनहरी धूप में,
बताओ ज़िंदगी कैसी चल रही है !
मुझे अक्सर एहसास होता है बूंदों की खड़खड़ाहट में,
ज़िंदगी वैसी की वैसी चल रही है !

लोगो से नाते टूट के चिठ्ठीओं से नाते जुड़ गये हैं, इसके अलावा कुछ भी तो नहीं बदला !!

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