करवट

ख्वाब की तह में रखी हुई याद आधी रात,
करवट लेते हुए बिस्तर की सिलवट के साथ खुलती है !
एक हवा का झोंका खिड़की के घूंघट को उड़ा,
फलक का मुखड़ा दिखा जाता है !
रात के रुख़ पे टपक गया हो आंसू जैसे चांद से,
सावन का एक बादल बिखरे से काजल सा चांद के ओर !
सब झीलें सो रही हैं धरती के आँचल पे,
कोई नहीं जो आगोश में ले ले रोते आसमान को !


कोई भी नहीं होता आस पास जो गले लगा ले मुझे,
आधी रात जब करवट लेते वक़्त मालूम होता है की आंख भीगी है !!

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