सुबह

वो हर बार सपने पे उंगली रख देती थी,
मैं हर बार करवट ले लेता था !
तब जगा जाता था,
सुनहरी रोटी पे चांदी सा मख्खन,
या फिर लोहे के चमच में चांदी सी खीर !

अब बस ख्वाबों में चुभ जाती है सुबह !!

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