गुच्छा

वो गुल्मोहर के पेड़ के नीचे ढान्स लगाए मिली थी,
जैसे उस गुल्मोहर का ही कोई गुच्छा ज़मीं पे गिरा हो !
और वैसी की वैसी ही दूर छूट गयी !
फिर उसको किसी दिन देखा,
उसकी नयी ज़िंदगी के पहचान-पत्र के साथ !


लगा के सब फूल सूख गये,
मगर गुच्छा अभी भी बंधा हो किसी डोरी से !!

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