धूप का साया

वक़्त ने भी अपने मन में बंजारापन बसाया है,
देखो, सब अरमानों को तदबीर बना दिया !
आज फिर छांव पे धूप का साया है,
देखो, पंछीओं की चहचहाट ने गमों की रात को जला दिया !!

वक़्त की नींद

आज की रात सो गया है वक़्त भी थक के,
खुद ही करवटें लेता है,
और बल पड़ जाते हैं खुद ही में !
लगता है इस रात की सुबह नहीं,
और ढल जाएगी इक ओर सांझ में !

समझ

किसी को जान लेना काफ़ी है मोहब्बत के लिए,
या मोहब्बत काफ़ी है किसी को जान लेने के लिए !
इस समझ से मैं ढोर हूं मगर मोहब्बत समझता हूं,
जैसे रात समझती है रोशनी को, रोशनी से जुदा रह के भी !!

rainbow रंग

मेरी ब्लैक आंड वाइट कविताएं कुछ jealous सी है rainbow रंगो से आज...
के मेरे शब्दों के रंग सिमट गये हैं ग्रे-स्केल की सीढ़िओं पे...
मेरी कल्पना जकड़े हैं दो प्रेमी - इक सफेद काग़ज़ और इक पेन्सिल की नोंक का चारकोल !

सितारों की भीड़

इस भीड़ में मैं हूं पर इनसे अलग नहीं हूं,
मुझे कोई आवाज़ दे दो के मालूम पड़े मैं कहां हूं !
तुझे मिलेंगे सितारे कई रात को, मगर जहां चाँद नहीं मैं वहां हूं !

अधूरी रात

आज का चांद बनाया है मैने एहसासों से...
और उसमे उड़ेली है चांदनी कुछ यादों की...
अंधेरा रंगा है आसमान पे मैने स्याही से...
तारे बिखरा दिए हैं सुलगती सिगरेट की राख से...
उनपे बादलों सी परछाईं है मेरी नींद की...

जाना, रात फिर भी अधूरी है तुम्हारे बिना !

इफ्तारी

ज़िमेदारियां निभाता है, रिश्तों में मानता नहीं !
वो रोज़ा निभाता है, पर इफ्तारी में मानता नहीं !!

खोज

मैं ढूंढता हूं तुम्हे अपने हर ख्वाब में,
और तह लगा के रख देता हूं हर सुबह सब ख्वाब,
डायरी के उस पन्ने के नीचे,
जिसे तुमने उस दिन चुपके से पढ़ लिया था जब मैं सो रहा था !

जिसमे तुमसे पहली मुलाकात का ज़िक्र था !!

भंवर

मुझे लगता है उदासी और मोहब्बत बराबर बंटी है दुनिया में,
कहीं मोहब्बत तो कहीं उतनी ही उदासी,
और कहीं दोनो एक साथ... 



|| भंवर ||
ये भी खुदा ने खूब की,
पानी में डूबतों को तिनका,
और मोहब्बत में डूबतों को क़लम दे गया !


खुशनसीब तो लग गया किनारे,
और मुझे काग़ज़ों के भंवर दे गया !!

अनकहा

के मैं लिखूं, तुम मिटाओ,
और लहरें तरस जाएं अपने हक़ को !
गीली रेत के नीचे आज भी जाने कितना अनकहा छुपा होगा !!

फाऊंटेन पेन

देखो आज फिर बौरा गये हैं,
बादलों के झुर्मुट !
और मैने भर लिए हैं अपने सारे फाऊंटेन पेन,
अब अगले सावन तक भिगोता रहूंगा काग़ज़ों को !!

अलविदा का इंतज़ार

ग़लत होगा गर मैं कहूं के इंतज़ार नहीं किया कभी,
मगर असल मुद्दा है के सालों गुज़र गये, मगर किसी ने अलविदा नहीं कही !

महत्वकांशा

किस्मत की भी अपनी महत्वकांशा रहती है शायद,
मैं जब भी उठता हूं, फिर फिसल जाता हूं किसी के नयनों के घाट पे !

अंजान

अजीब है के खेल खेल में उलझ जाता है बरसों का बुना ताना-बाना !
जैसे किसी अंजान मोड़ पे विछड़े हुए महबूब का मिल जाना !
या ढूंढना नमक की बोरी में गुम हुआ चीनी का एक दाना !!

होश

बेखुदी का एहसास दे के बोलती हो,
के ये रही सही ज़िंदगी जी लेना होश में !
जाना, समझो, अब या तो होश है या ज़िंदगी है !!

चाशनी

मेरी उंगलिओं पे चाशनी लगी है,
जब से गुज़री हैं,
जलेबी जैसे तुम्हारी ज़ुल्फो के सिरों से !


ज़िंदगी में मीठास की कमी लगे तो,
थोड़ी ले जाना मुझसे !
यारा, सब तुम्हारी ही उधारी है !!

रूखी सी

मैं जानती हूं के तुमने रखी हैं
अपनी मीठी मीठी बातें किसी और के लिए !
और मेरे हिस्से बची है बे-रूखी सारी !

जानते हो बरसों के भूखे के लिए क्या होता है,
रूखी सुखी रोटी का इक निवाला !!

पहल

जानती हो जब बच्चे थे,
और गेंद सड़क के बीच चली जाती थी,
आस लगाते थे कोई मदद करेगा !
अब मुठियां भीच के,
कनखिओं से देखते डरा करते हैं,
कौन पहल करेगा !!

वादे

शक्कर के दो दाने हैं,
जो तेरे हाथ में थे !
इलायची का दाना भी है,
जो मेरे हाथ में था !
और महीन सा अदरक का तीखा,
जो उधार लिया था समंदर के किनारे रेत से !
पर इसमे तुम्हारी आखों के किए वादे नहीं हैं,
जो चाय मैं पी गया पहली बारिश की गीली मिट्टी की खुश्बू के साथ !!


शायद वो वादे विस्की के प्याले में मिल जाएं, किसी ओर शाम !!

करवटें

जिसको सड़क पार जाने के लिए भी ज़रूरत होती थी,
हाथ में किसी का हाथ थामने की !
देखो आज चली जा रही है ज़िंदगी के उस पार,
हाथ में अपनी रातों की करवटें लिए !!

तुम हो

मेरे रंज़ सब देखते हैं, और, मुस्कुराहटें कोई नहीं !
गम सब दे जाते हैं, पर, राहतें कोई नहीं !
बस तुम हो जो मुझे जानते हो और कोई नहीं !!
मैं भी नहीं !!

पत्ते

तुम छूट गयी थी पीछे,
मैं बिना ज़िंदगी के ही आगे बढ़ा हूं !
रेत से बना हूं,
रेत में मिलने को कफ़न ओढ़े पड़ा हूं !
यहाँ सब जानते हैं मुझे,
इसी लिए चेहरे से मुखौटा उतार लड़ा हूं !
फूल बहुत हैं यहाँ पे पहेले से,
मैं शहतीरों के झुर्मुट में पत्ते लिए खड़ा हूं !!

शरारती

अब निगाहें चुरा लेते हैं, जब देखते हैं !
शायद मेरी निगाहों के लाड ही ने शरारती बना दिया होगा !!

संघर्ष

तुम निगाहों के उठने से परेशान,
तो मैं पलकों के झुकने से हैरान !
मोहब्बत इसी संघर्ष की पैदाईश है शायद !!

ख्याल

तुम्हारे ख्याल नहीं आते अब !
जो सामने, बहुत नज़दीक हो, उसका ख्याल आए भी तो कैसे भला !
तुम मेरे साथ हो हमेशा, जैसे मैं खुद के !!