मौसमों से लड़ाई

कैंटीन में बैठे बैठे बेंच पे तुम्हारा नाम लिखा था,
और पीपल के एक जर्द पत्ते से ढँक दिया था, जब तुम आई !
चाए पीते पीते तुमने कहा था,
जल्द ही पतझढ़ के बाद पीपल पे नयी कोंपलें और नये सुरख पत्ते आएंगे,
जिनकी खुश्बू तुम्हे गीली मिट्टी की खुश्बू से भी ज़्यादा प्यारी है !


मुझे पक्का पता तो नहीं पर मान लेता हूं के,
आज भी अकेले में किसी का इंतज़ार करते हुए,
कॉफी पीते पीते तुम भी अपने नाखूनों से नैपकिन पे मेरा नाम कुरेदती होगी !


ज़्यादा कुछ नहीं बदला,
बस पीपल के सुरख पत्ते हरे हो गये हैं, मौसमों से लड़ते लड़ते !!

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