रात

सूरज सर चढ़ते ही ज़िन्दगी से लड़ाई शुरू हो जाती है, और उधर चाँद सर पे आ के मिला देता है ज़िन्दगी से फिर से । इस समय को रात की जवानी कहूं या ढलती उम्र कहूं ! आसान सवाल भी कभी कभी कितना उलझा जाते हैं चंचल मन को...
रात बाकी है कुछ, कुछ बीत गयी; मगर गुफ्तगूं पूरी बाकी। कुछ जवाब सवालों की टोह में तो कुछ सवाल जवाबों की टोह में ।

सब सवाल ढलती उम्र के और जवाब जवां अभी...

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