तकरीबन तकरीबन

उसे लगता है मोहब्बत करना तकरीबन तकरीबन आता है उसको; जैसा के तकरीबन सभी ही को आता है । पर जब भी वो किसी को टूट के मोहब्बत करना चाहता तो साली ज़िन्दगी आड़े आ जाती है। कभी महत्वाकांक्षाएं, तो कभी इच्छाएं, तो कभी कोई डर या फिर झिझक! वो अभिमन्यु की ही तरह मोहब्बत के चक्रव्यूह में घुस तो जाता है पर इसे हल करके आगे कैसे बढ़े, समझ नहीं आता। उसकी ही तरह पता नहीं तकरीबन तकरीबन हम सभी फेल क्यों हो जाते हैं इस सरल से काम में!

यारा, मैं सोचता हूँ अगर ये ज़िन्दगी ना होती तो शायद हम मोहब्बत तो कम से कम सही से कर पाते। इसी लिए तो शायद सब आशिक़ मौत के बाद वाले किसी जहां में जा के ही अपना इश्क़ परवान कर पाते हैं; चाहे किसी को भी ले लो हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल या कोई ओर...

जिन्दगीआं तो शायद मिलती हैं सिर्फ़ आग़ाज़ को, अंजाम के लिए बने हैं दूसरे जहाँ।

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