एक कप चाय

सर्दिओं का अलसाया सा इतवार,
और इतवार की कोहरे भरी दोपहरी !
दवात में पेन की डुब्बक,
और चूल्‍हे पे बर्तन चड़ाने की खनक !
उंगलिओं में पत्ती के दानों का एहसास,
और मोहब्बत का रूह से उंगलिओं तक का सफ़र !
हर दाने का पानी की लहरों में अपना रंग भरना,
और ईज़ल पे टिकी कैनवस से काग़ज़ों के पैड का फड़फड़ाना !
बेलन से लौंग-इलायची को पीस के छिड़कना,
और मोहब्बत के सब मंज़रों को घोलते पेन के स्ट्रोक्स !
कतरा कतरा घुलता अदरक का तीखा,
और काग़ज़ पे तंज़ कसती निब की धार !
तुलसी की पत्ती की गीली सी खुश्बू,
और स्याही से ज़िंदगी पाते शब्दों का स्वाद !
अंत में दूध से धुलता सारा रंग,
और धूप के इंतज़ार में हवा से करवट लेते शब्द !
फिर सब नितार लिया छननी से,
और उड़ेल दी मोहब्बत कोरे काग़ज़ों पे !

एक कप मसालेदार चाय आज फिर काग़ज़ पे एक मोहब्बत ज़िंदा कर गयी !
मगर मेरे वजूद में छननी में बची हुई ज़ाया चाय-पत्ती सी,
मोहब्बत बाकी रह जाती है !!

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