सपने

सुनो !

मेरे होठों पे तिन नहीं है,
पर मेरी ठोडी पे मस्सा है !

मेरी ज़ूलफें भी कोई रात या कोई घटा नहीं,
बस मेरी ही उलझनें हैं !

मेरी उंगलिओन में सर्दी वाली धूप सी गर्मी नहीं,
बस मेरे गुनाहों की टेढ़ी मेढी कहानियाँ हैं !

मेरी आँखें कोई झील या कोई समंदर नहीं,
बस मेरे ही सपने तैरते हैं !


मेरे सपने, जो मैने अपनी नींदो में से खंगाले हैं !
बाँटोगे इन्हें कुछ अपने सपनों से?
 


जब रात अपना बिस्तर बिछा लिया करेगी दुनिया की आँखों में,
हमारी आँखें उठ के खेला करेंगी छुपन-छुपाई !
वादा तो नहीं, कोशिश रहेगी ...

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