हाशिया

चादर को बना के डायरी का सफ़ा...
रात की स्याही से लिखी...
ठीक हाशिए पे अपनी कहानी...
ओ पीची, महीन सी एक सीधी सिलवट से तै की हुई हाशिए की हद...

गीली लकड़ी सी जलती रही हो मोहब्बत पूरी रात,
और राख सी उड़ा दी हो सब ज़िंदगियाँ !
जैसे किसी ने फूँक मार दी हो !!


आँखों में नींद से पहेले उस राख की जलन,
जीने के लिए काफ़ी है के नहीं ?

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