निचोड़

उसने दीवार फांदी थी,
सिर्फ़ इसी लिए के,
वक़्त किसी के लिए रुकता नहीं,
फिर मौका मिले ना मिले अपने लिए कुछ करने का !

दीवारें उसके बाद ओर भी कई मिली फांदने को,
बड़ी दीवारें - स्माज की, कसौटीओं की, स्वाभिमान की !
मगर कहीं भी वैसा जादू ना था,
जो उस दिन 'सिर्फ़ एक संतरे' के लिए छोटी सी दीवार में था !

उसने जो भी किया,
उसमे 'अपने लिए' से कहीं ज़्यादा 'तुम्हारे लिए' था !

आज भी चली थी वैसी हवा,
और एक हादसा आज भी हुआ था,
जब हवा से उलझ गया था दुपट्टा !

उसके सारे हादसों का निचोड़ - तुम !

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