पैरों के तले

उमरों के पन्ने रखे रहते हैं दरखतों पे,
पतझड़े हिसाब लगातीं पत्ता पत्ता !
हवाएं उड़ा ले जाती हैं कुछ किस्से,
जिनके ठूंठ में भरे रहेंगे सब राज़ !
कुछ भीग के मिट्टी बन गये होंगे,
बरसात में और कुछ स्याही !


बाकी सब, तुम्हारे पैरों के तले खड खड़ाहट !!

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