यूँ तो हर रात मैं तकिया ढून्डता हूँ
पर जैसे तेरी गोद की कमी खलक रही हो !
अक्सर होता है के आईना देखता हूँ
और तेरी परछाई झलक रही हो !!
पर जैसे तेरी गोद की कमी खलक रही हो !
अक्सर होता है के आईना देखता हूँ
और तेरी परछाई झलक रही हो !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Friday 16 November 2012 at 00:17
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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