बहुत बार गुम होने के बाद,
मैं पहुंचा हूं यहां तलक !
उंगलियां कब पकड़ी थीं, याद नहीं,
कदम सब अपने ही हैं,
देखते हैं, जाऊंगा कहां तलक !!
मैं पहुंचा हूं यहां तलक !
उंगलियां कब पकड़ी थीं, याद नहीं,
कदम सब अपने ही हैं,
देखते हैं, जाऊंगा कहां तलक !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Monday 19 October 2015 at 22:22
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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