टूटी हुई निब

टूटी हुई निब से
कांपती उंगलीओं से
जो भी लिखना, संभाल के रखना !

रेत पे रखा पत्थर,
धँस जाता है, रेत के धँसने पर !
पत्थर का वजूद, रेत का हो के रह जाता है !

जब मिलेंगे तो गुज़रे हुए दौर को याद करेंगे,
जब हम पत्थर बन के रेत पे, रेत के खिलाफ, रेत की कहानी लिखते थे !

मुसाफिर

मैं माझी हुं, किनारों से डरता हुं
मैं मुसाफिर हुं, ठिकानों से डरता हुं

खोने को कुछ

वो जो पक्के रंगो वाली गाँठें थीं,
वो भी खुल गयीं !
उगते सूरज की लालियां जो घुली थी रातों में,
वो भी धूल गयीं !
एक दूजे की मुस्कुराहटो में जो बसा ली थी हंसी,
वो भी भूल गयीं !

हवा जो कान के पास से गुज़र जाती है,
अब तुम्हारी बातें नहीं करती !
सुनहरी शामों में खामोशियाँ मिलती हैं,
पर कोई कहानी नहीं !

ना होना एक बात है और खो देना एक बात है,
और दोनों ने ही मुझे आज़माया है !

सोचता हूं के ये बदक़िस्मती है या खुशकिस्मती
के मेरे पास खोने को कुछ भी नहीं !
सच्च ! कुछ भी नहीं !!


When you move from having everything, to have left nothing to lose...