पहाड़ की सर्दी



बर्फ के समंदर में कुछ चट्टानें झाँकतीं हैं  !
मुझे लगा कोरे काग़ज़ों पे छीटें पड़े हों,
कुछ धूल मिट्टी के यूं ही !

उसने छुपा लिए आंसू अपनी सर्द सासों में !
मुझे लगा के ग्लास में नशा कुछ कम हो गया हो,
पिघली बर्फ से यूं ही !

पर्दे

पर्दों के पीछे अतीत के दरीचों में,
एक गुल्दान रख के गयी थी तुम !
उसके फूल सब मुरझा गये हैं,
पर अब भी बाकी हैं कुछ कांटें !!
 

फूल अब डायरी में सियाहीओं से लड़ते हैं,
और कांटे बेताब रहते हैं ख़रोंचने को !
वक़्त ने मरहम लगा के छुपा दिया उपर से,
पर नीचे बाकी हैं सब झरीटें !!


पर्दों को अपनी जगह रहने दो,
यारा, बाहर यादों का घना अंधेरा है, अंदर आ जाएगा !!

छननी

तुमने बुन लिए हैं नये रिश्ते,
मैं अभी तलक सिल रहा हूं पुरानी क़तरनें !
सितारों ने भर ली है कटोरी आज फिर चाँदनी से,
और छीन लिया है चाँद मेरी आखों से !
तुम अपनी आखों में प्रेम मत रखना,
रखना बस इक पहचान नये रिश्ते की,
और बना लेना मेरी कतरनों को अपनी छननी !!
देर से ही सही, चाँद आएगा ज़रूर !!

प्र्यतन

प्रेम एक मंझा हुआ खिलाड़ी है, आज फिर से पैंतरा चल गया और मेरी मृगतृष्णा अब भी वैसे ही है, इसी लिए तो हाथ में फिर से कांच का ग्लास आ गया |
बाहर धूम धड़ाके की आवाज़ें आ रही हैं और लोग अपनी बदी जलाने का प्र्यतन कर रहे हैं |
मैं अपनी नेकी ढूंड रहा हूं, उसी पहेले और आख़िरी प्रेम-पत्र में…
प्र्यतन करना अच्छी बात है |