दरवाज़े

मैंने सहेज रखे हैं अपने सवाल!
सुनता रह जाता हूँ,
पर जवाब कोई बोलता ही नहीं!

कई दरवाज़ों के पते मिल गए!
खटकाता रह जाता हूँ,
पर कोई खोलता ही नहीं!

आज चार ओर रख लीं

तेरे लतीफों में से छिटकी हँसी को
गुल्लक में छुपा लिया था !
और पिछली बारिश की चार बूँदें बचा के
गांठ बाँध ली थी चुन्नी के सिरे में !

कल तुम्हारा एक लतीफ़ा मिला मुझे
अपनी ही हँसी में !
और गांठ खोल के भिगो गया पल्लू !!

आज फिर से बहुत बूँदें बरसीं
तो चार ओर संभाल कर रख लीं !!

अदल-बदल

चल अदल-बदल लेते हैं वक़्त की घड़ियां,
और नाप लेते हैं एक-दूसरे के गमों के पैमाने !

ये महखाने के बाहर टॅंगी रात, वो तेरी
जो बिस्तर की सिलवटों में पिसी रात, वो मेरी

इस सिगरेट के छल्लों में उड़ी, वो शाम तेरी
और जो बालकनी की उदास फ़िज़ा में घुली शाम, वो मेरी

पर एक सुबह रख लेते हैं जो हम दोनो की होगी,
और उस सुबह के बाहर तख़्ती लगा देंगे
"Do Not Disturb" की !!

संयोग या शायद कामना

उसे लेमन टी पसंद थी और मुझे जिंजर टी
ये जो ग्लास भरा है उसका रंग भी कुछ लेमन टी जैसा है !
और मैं उठ के यादों को जीवित करने खिड़की पे आ जाता हूँ
मैं भूल जाता हूँ के खिड़की के आगे एक परदा होता है !
पर जाने क्यों ये आभास ज़रूरी नहीं, तुझे याद करने को !
परदे में वही रंग हैं जो तेरे कमीज़ पे थे उस दिन !
शायद यह सिर्फ़ एक संयोग है,
या मेरी कामना के तू बसे कहीं आस पास मेरे !!

मौत की गुज़ारिश

मेरी दिली तमन्ना है के मैं मरूं तो ज़िंदगी के जैसे मरूं,
मौत को भी एक ज़िंदा-दिल मेला बना देना चाहता हूं !
मैं अपनी बाइक को दूर से भगा के,
किसी पर्वत् की चोटी से उछाल देना चाहता हूं !
मौत से पहेले के पल में पूरी ज़िंदगी जी लूं,
अपने पैरों पे नहीं, अपने वजूद पे खड़ा होना चाहता हूं !

यूं तमाशबीन कहते हैं के मोहब्बत के बिना
ज़िंदगी कोई ज़िंदगी नहीं !
मगर आज तो मैं ज़िंदा हूँ,
ये जो फर्याद है मौत की, वही ज़िंदगी का सबूत है !
वही मेरे ज़िंदा होने का सबूत है !!

सिलवटें

कुछ बच्चों सा प्यार था, जो उलझा सा रहता था अपने आप में ही - कभी नींद में डूबा डूबा सा तो कभी झाग से लड़ता हुआ| और शायद बच्चों की ही तरह उसने भूला दिया ये सोच कर के अलहड़ उम्र में रंगी जानी वाली तस्वीरें, बस ग़लतियाँ होती हैं, जिन्हें वक़्त रहते ठीक कर देना चाहिए|

और मैं भी ये सोच चुप हो गया के इस ख्वाब का भला कौन साक्षी रहा है, जिसे सिर्फ़ हम दोनों ने देखा था| तन्हा रातों और ख्वाबों से किसी ओर को हमदर्दी नहीं हो सकती| समय एक मिथ्या है, ये घड़ी की सुईयां बेशक कबूल कर लें पर वो बादल नहीं करते जो मेरी पलकों पे सज़ा गये थे तुम| मगर समय सच में एक मिथ्या है जिसे असल में कोई देख नहीं पाता बस हम मान लेते हैं| मेरी रातें अपंग हो कर ठहर गयी हैं किसी सुंदर मुकाम पर - किसी हसीं परी से जैसे उसकी खूबसूरती चुरा कर बना हो वो मुकाम| बरसों किसी ने मेहनत की हो जैसे खुद को खुद में छुपा देने की - तुम यूँ रूई की तरह सिकुड जाती थी और मैं किसी सॉफ्ट-टॉय जैसे तुम्हे सहलाता रहता| मैं आज भी बिस्तर की बाईं ओर खाली छोड़ कर सोता हूँ, पर बाईं ओर अब सिलवटें नहीं पड़ती|

मायूसी

मेरे फेंके कंकरों से सिलवटों में बदलती शांत सी उस झील के किनारे
डुब्बक डुब्बक आवाज़ दिलों में मचे शोर को छुपा लेती थी !
तुम ढास लगाए मेरी पीठ के साथ बैठी
घास को उधेड़ हमारी ज़िंदगी बुन दिया करती थी !

आज भी छाओं तो वहीं इंतज़ार करती है हमारा
पर शायद अब बुनने को कुछ बाकी नहीं है !!

यादों की गठरी

सुबह की सांस सी बासी कुछ यादें थी,
जो गठरी में बांध ट्रंक में रखीं थी !
और जब मैं ख्वाबों को तह लगा रही था,
आज फिर बरस बाद बारिश हो गयी !
मुझे फिर से काट खाने लगी,
ये बूँदें यादों को कुरेदती हैं !
मैं सोचती हूं के ख्वाबों को तह दूं,
या गठरी को फिर सम्भालूं !

जीवन से उधड़ी ये बिखरी सी कतरनें !
मैं उकता गयी हूं इनको समेटते !!