यादों की गठरी

सुबह की सांस सी बासी कुछ यादें थी,
जो गठरी में बांध ट्रंक में रखीं थी !
और जब मैं ख्वाबों को तह लगा रही था,
आज फिर बरस बाद बारिश हो गयी !
मुझे फिर से काट खाने लगी,
ये बूँदें यादों को कुरेदती हैं !
मैं सोचती हूं के ख्वाबों को तह दूं,
या गठरी को फिर सम्भालूं !

जीवन से उधड़ी ये बिखरी सी कतरनें !
मैं उकता गयी हूं इनको समेटते !!

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